डिजिटल क्रांति ने मानव जीवन को सुविधाजनक बनाया है, लेकिन इसकी चकाचौंध के पीछे छिपे पर्यावरणीय खतरे गंभीर चिंता का विषय बन गए हैं। स्मार्टफोन, क्लाउड कंप्यूटिंग, एआई, और क्रिप्टोकरेंसी जैसी तकनीकें अब धरती के संसाधनों को बेतहाशा निचोड़ रही हैं। ग्लोबल ई-वेस्ट मॉनिटर 2023 के अनुसार, दुनिया भर में हर साल 7 करोड़ टन से अधिक ई-कचरा उत्पन्न होता है, जिसमें से केवल 17% ही रिसाइकिल हो पाता है। भारत इस मामले में विश्व का तीसरा सबसे बड़ा ई-कचरा उत्पादक देश है। प्रौद्योगिकी के पर्यावरणीय प्रभाव को समझना और टिकाऊ समाधान ढूँढना आज की सबसे बड़ी जरूरत है।
प्रौद्योगिकी और पर्यावरण: वर्तमान संकट
- ई-कचरे की बाढ़:
फास्ट फैशन की तरह टेक इंडस्ट्री में भी “उपयोग और फेंक” की संस्कृति बढ़ी है। लैपटॉप, स्मार्टफोन, और IoT डिवाइस बनाने में नदरों, सीसा, और लिथियम जैसे विषैले पदार्थों का उपयोग होता है। ये डिवाइस कचरे के रूप में नदियों और लैंडफिल साइट्स में जमा होकर मिट्टी, पानी, और हवा को प्रदूषित करते हैं। - ऊर्जा की भूख:
डेटा सेंटर्स और ब्लॉकचेन टेक्नोलॉजी बिजली के विशाल उपभोक्ता हैं। उदाहरण के लिए, बिटकॉइन माइनिंग हर साल अर्जेंटीना जितने देश की बिजली खपत करता है। भारत में भी, IT सेक्टर देश की कुल बिजली का 8% उपयोग करता है। - कार्बन उत्सर्जन:
क्लाउड कंप्यूटिंग और वीडियो स्ट्रीमिंग सेवाएँ (जैसे Netflix, YouTube) ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में बड़ा योगदान देती हैं। एक अनुमान के मुताबिक, डिजिटल टेक्नोलॉजीज वैश्विक उत्सर्जन का 3.7% हिस्सा हैं, जो विमान उद्योग से भी अधिक है।
वैश्विक प्रयास और नीतियाँ
- यूरोपीय संघ (EU) ने 2023 में राइट टू रिपेयर कानून पारित किया है, जो कंपनियों को उपकरणों की लंबी उम्र सुनिश्चित करने के लिए बाध्य करता है।
- Apple, Google, और Microsoft जैसी कंपनियाँ अब कार्बन न्यूट्रैलिटी के लक्ष्य के साथ नवीकरणीय ऊर्जा पर स्विच कर रही हैं।
- COP28 में डिजिटल प्रदूषण को कम करने के लिए Green Digital Action पहल शुरू की गई, जिसमें 40 देशों ने हिस्सा लिया।
भारत में स्थिति: चुनौतियाँ और प्रगति
भारत प्रौद्योगिकी के पर्यावरणीय प्रभाव से दो-दो हाथ कर रहा है:
- ई-कचरा प्रबंधन नियम 2022: निर्माताओं को पुराने इलेक्ट्रॉनिक्स को रिसाइकिल करना अनिवार्य है।
- हरित हाइड्रोजन मिशन: केंद्र सरकार ने 2023 में 19,744 करोड़ रुपये आवंटित कर हरित ऊर्जा को बढ़ावा दिया है।
- सोलर पावर्ड डेटा सेंटर्स: अडानी और टाटा जैसे समूह नवीकरणीय ऊर्जा से चलने वाले डेटा सेंटर्स बना रहे हैं।
चुनौतियाँ:
- अनौपचारिक रिसाइक्लिंग: मोरादाबाद और मुंबई जैसे शहरों में ई-कचरा अवैध तरीकों से जलाया जाता है, जिससे कैंसरजन्य धुएँ का उत्सर्जन होता है।
- जागरूकता की कमी: 75% भारतीयों को ई-कचरे के नुकसान के बारे में पता नहीं है।
- नीति अंतराल: अभी भी EV बैटरियों और सोलर पैनल्स के निस्तारण के लिए स्पष्ट दिशा-निर्देश नहीं हैं।
हरित प्रौद्योगिकी: समाधान की ओर कदम
- सर्कुलर इकोनॉमी:
उपकरणों को रिपेयर, रीयूज, और रिसाइकिल करने पर जोर। फेयरफोन और सैमसंग जैसी कंपनियाँ मॉड्यूलर फोन्स बना रही हैं। - ग्रीन क्लाउड कंप्यूटिंग:
Google और Amazon AWS ने अपने डेटा सेंटर्स को पवन और सौर ऊर्जा से संचालित करने का लक्ष्य रखा है। - ई-वेस्ट टेक्नोलॉजी:
बेंगलुरु स्टार्टअप अटेरो रिसाइक्लिंग लिथियम-आयन बैटरियों से कोबाल्ट और निकल निकालकर नया मॉडल पेश कर रहा है। - जन जागरूकता:
भारत सरकार ने डिजिटल इंडिया अभियान के तहत ई-कचरा संग्रहण केंद्रों को बढ़ावा दिया है।
निष्कर्ष: टिकाऊ भविष्य की ओर
प्रौद्योगिकी और पर्यावरण के बीच संतुलन बनाना 21वीं सदी की सबसे बड़ी परीक्षा है। भारत जैसे विकासशील देश के लिए यह चुनौती दोगुनी है, क्योंकि उसे आर्थिक विकास और पर्यावरण संरक्षण दोनों को साथ लेकर चलना है। सरकार, कॉर्पोरेट्स, और नागरिकों को मिलकर हरित नवाचार को प्राथमिकता देनी होगी। याद रखें, प्रकृति के बिना प्रौद्योगिकी अधूरी है—आइए, डिजिटल समृद्धि को प्रकृति की कीमत पर न खरीदें।